Friday, October 8, 2010

पिघलता दर्द

ख्वाहिशों का है धुआं उड़ गया, यादों कि कुछ राख बाकी  है
उम्मीदें पतझड़ में बिखर गयी, अरमानों कि बस शाख बाकी है
ख्वाबों का सूखा सा पद गया, आँखों में बस सेहरा बसा है
दर्द पिघलता दिल दरिया में, सिर्फ़ ग़मों का कुहरा बाकी है 

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