शाम के ढलते ही आँखों तले, यादों के दिए जला लेता हूँबीते लम्हों की पनाह में, अपनी तन्हाई को भुला लेता हूँवो प्यारी बातें, वो चाँद मुलाकातें , अब भी हसीन लगती हैंउन खुशहसीन पलों में डूब कर , इस दिल को बहला लेता हूँकई ख्वाहिशे , तमन्नाएं जो ना पूरी हो सकी, हैं ज़ेहन में मेरेहकीक़त की मुश्किलों से दूर होके, उन्हें ख्वाबों में बुला लेता हूँवो खुशनुमा दौर ओझल ना हो जाये कहीं ज़ेहन से यूँ फिसल केइसीलिए साँझ ढलते ही उन्हें आँखों में छिपा पलकों को सुला लेता हूँ
Saturday, February 12, 2011
दिल को यूँ बहला लेता हूँ मैं
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