Thursday, May 6, 2010


नाप  लेंगे  हम  समंदर की भी  गहराई
पर  तेरी  आँखों  की  न  कुछ  थाह  हमको
एक  नज़र  जी  भर  के  तुझको  देख  लूं  बस
फिर  नहीं  कोई  किसी  से  भी  चाह  हमको
तेरे  इश्क़  में  खुद  को  ही  हम  भूले  हैं  बैठे
फिर  भला  कैसे  किसी  की  हो  परवाह  हमको
तेरे  मकाँ  के  पास  से  जो  है  गुजरती
बस  नज़र  आती  वही है  बस  राह  हमको
यूँ  तो  खुशियों  के भी  पल  आये बहुत  थे
पर  क्यूँ  सुनाई  देती  है  बस  कराह  हमको
तेरे  दिल  में  कुछ  भी  है  नहीं  मेरे  लिए
जानता  हूँ  फिर भी  क्यूँ  है  ये  आह  हमको
तूने  अपने  दिल  में  ही  न  बसाया  मुझको
अब  भला  मिलेगी  कहाँ  कोई  पनाह  हमको
हमने  जिसको  भी  है  चाहा  आज तक वो  ना  मिला
ऐसी  फूटी  तकदीर  की क्यूँ  है  डाह  हमको
मेरी  तकदीर  में  तेरी  कमी  ही  लिखी  है
वक़्त  ने  हर  लम्हा  दी  ये  सलाह  हमको
दिल को था समझाया कितना  पर ये माना ना 
था नसीब में ये क्यूँ लिखा ये गुनाह हमको 

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