ये जो नयन हैं तेरे , कितनों के चैन चुराए हैं
इन की गहराइओ में तूने , सारे दिन रैन छिपाए हैं
कभी ये चमकते से लगते हैं ,तब हर ख़ुशी इनमे दिखती है
कभी इनके सूनेपन में क्यूँ मुझको , एक बेबसी सी झलकती है
ये तेरी पलकों में छिपी आंखें , जैसे दिल का ये कोई रास्ता हों
कभी ठहरी सी ,कभी मचलती ,
खामोशियों में बयाँ करती दास्ताँ हों
जागी जागी सी ये , सोयी सोयी सी ये ,
हर लम्हा हर पल खोयी खोयी सी ये
जाने क्या ढूढती रहती हैं जाने क्या पूछती रहती हैं
कितने सवाल छिपे हैं इन पलकों की कालिमा के पीछे
कितने राज़ दबे हैं इस गहरी सी लालिमा के पीछे
न सवालों का कोई अंत है न जवाबो की कोई पहल
क्यूँ लगता है तेरी नज़र पूछती रहती है कुछ हर पल
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