इन राहों में ज़रा चलना संभल कर , ये दिल ,यहाँ पे ज़र्रे ज़र्रे में छिपे तूफान बैठे हैं
मैं माथा भी टेकूं तो तो कहाँ टेकुं बता मुझको ,यहाँ तो हर गली में कितने ही भगवान बैठे हैं
भला बाटूँ किससे मैं अपने हालेदिल की उलझन , यहाँ तो हर दिलों में टूटे से अरमां बैठे हैं
मदद के वास्ते मैं आसरा रखूँ भी तो किसका ,यहाँ हर सख्श के ज़ेहन में छिपे शैतान बैठे हैं
किसी को देखकर ये दिल न करना उस पे तू यकीं ,यहाँ हर चहरे के पीछे कई हैवान बैठे हैं
हमारी बातों का तो जी भर के लुत्फ़ लेते थे सब ,अब हमने की फर्म्हिश तो बन बेजुबान बैठे हैं
कभी किसी मोड़ पे ठोकर से बहा उनके खून का कतरा ,हम उन्ही राहों में आज भी लहूलुहान बैठे हैं
नज़र जी भर के भी देखूं तो देखूं भला कैसे ,मेरी इन झुकी नज़रों में तो एहसान बैठे हैं
हमारा उनका क्या रिश्ता भला हम कैसे बतला दे ,अकेले में तो मिलते हैं भीड़ में अनजान बैठे हैं