Saturday, February 12, 2011

आज़माईश-ए-दौर

 
बस  इंतज़ार  है  उस  सुबह  का,  जो  देर  सबेर  ही  सही  लेकिन  आएगी जरूर 
कितने  ही  गम  दर्द  दे  ये  वक़्त  हमें ..ख़ुशी  की  कोई किरण  भी  लाएगी जरूर 
यूँ दूर है ख़ुशी हमसे गर तो कोई तो वजह होगी, कभी तो ये घडी हमें बताएगी जरूर 
यूँ कब तलक हार  का दौर चलेगा बिन लड़े, कभी कोई तो बाज़ी हमें आज़माएगी  जरूर 
 
वो जीत का मंजर जो आँखों में ख़्वाब बन बैठा है, एक मौका तो  मिले ज़रा हकीकत में ढाल देंगे
वक़्त की आजमाईश की ख्वाहिश हो जाये बस पूरी, फिर तूफान से भी हम कश्ती निकाल लेंगे 

सुकूं


आवारा  से  बहके  कदम  कब  कहाँ  मुड़  जाये, खबर  कहाँ 
बंद  मुट्ठी  में  है  धुवां  भरा  कब  उड़  जाये, फिकर  कहाँ 
पतझर में  बिखरते  पत्तों  का  ढेर  समेटना  क्या 
फिर  हवा  के  झोंकों  में  ना  बिखरेगा, ये  शुकर  कहाँ 
इतनी  बातें  करती  हैं  ये  राहें  आजकल  मुझसे 
छोड़  इन्हें  किसी  मंज़िल  से  जुड़  जाये  ऐसी  कोई  ठहर  कहाँ 
ख्वाब  में  डूबी  ये  खुशनुमा  बेख़ौफ़  ज़िन्दगी,
ख़्वाब  यूँ  तोड़  के  उठ  जाएँ  ऐसी  कोई  हसीन  पहर  कहाँ 

राह  चलते  हुए  इतनी  राहत  का  गुमाँ  होता  है 
मंजिलो  को  पा के   भी  ऐसा  सुकूं  कहाँ  होता  है 

आरज़ू


कभी  चाँद  छूने  की  तमन्ना  रखी, कभी  सूरज  को  मुट्ठी  में  भरने  की  ख्वाहिश 
कभी  बादलों  संग  लुका  छिपी  का  ख़्वाब,  कभी  तारों  से  मिल  बतियाने  की  आज़माईश 
कभी  ख्यालों  में  लहरों  से  अठखेलियाँ  करना, कभी  चांदनी  के  सागर  में  डुबकियाँ  लगाना 
कभी  मन  में  आशाओं  के  ताने  बाने   बुनना, कभी  उम्मीद  की  हर  किरण  को  सवारना सहेजना 
ज़िन्दगी  के  हर  लम्हें  में  पूरी  ज़िन्दगी  जीने  का  जज्बा  है, वक़्त  को  थाम  रखने  का  हौसला  भी  है 
बस  इक  ज़रा  किस्मत  की भी  इनायत  हो  जाये, बुलंदियां  चूमेगी  कदम  इस  बात  का  यकीन  है  हमें 

दिल को यूँ बहला लेता हूँ मैं


शाम  के  ढलते  ही  आँखों  तले, यादों  के  दिए  जला  लेता  हूँ 
बीते  लम्हों  की  पनाह  में, अपनी तन्हाई  को  भुला  लेता  हूँ 
वो  प्यारी  बातें, वो  चाँद  मुलाकातें , अब  भी  हसीन  लगती  हैं 
 उन  खुशहसीन  पलों  में  डूब  कर , इस  दिल  को  बहला  लेता  हूँ 
कई   ख्वाहिशे , तमन्नाएं  जो  ना  पूरी  हो सकी, हैं  ज़ेहन  में  मेरे 
हकीक़त  की  मुश्किलों  से  दूर  होके,  उन्हें  ख्वाबों  में  बुला  लेता  हूँ 
वो  खुशनुमा दौर  ओझल  ना  हो  जाये  कहीं  ज़ेहन  से  यूँ  फिसल  के 
इसीलिए  साँझ  ढलते  ही  उन्हें  आँखों  में छिपा  पलकों  को  सुला  लेता  हूँ