जब चले थे साथ चले थे
हाथों में डाले हाथ चले थे
न जाने कैसा मोड़ था आया ,बिन बताये तुम मुड़ गए
आँखों में पलकों के नीचे ,थे कितने सपने बुने थे ,आँख खुली और सब उड़ गए
खुशिया थी चारों ओर , फिर ग़मों ने लगाया जोर
ना जाने किन लम्हों में जीत गए गम ,गहरी उदासी से हम जुड़ गए
Friday, April 16, 2010
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