सुनहरा सा जो एक ख़्वाब था , सारे सवालों का छिपा जवाब था
यादों का था कारवां सा , ज़ेहन में गहरा रवां सा
थोडा जला, धीरे धीरे पिघला , फिर उड़ गया वो धुआं सा
ना जाने कितने रंग दिखा गया , कितने से स्वाद वो चखा गया
इक पल में साड़ी खुशियाँ समेट ली ,कितने नए अरमां जगा गया
लम्हा वो आया यूँ , इस दिल को भाया यूँ
नयी राह और दिशा देके , ज़िन्दगी में छाया यूँ
Friday, April 16, 2010
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