Friday, April 16, 2010

ज़िन्दगी है   चार   दिन   की  ,हर   ख़ुशी   है  चार   दिन   की 
खुशियों   की   ये   बहती   नदी   है  ,पी   लो  जितना  पी   सकते   हो 
चाँद   लम्हें   है   यहाँ   बस  ,जी   लो   जितना   जी   सकते   हो 

1 comment:

  1. इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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